विशेष संवाददाता द्वारा
पटना: राजनीति में जन प्रतिनिधि तरक्की के लिए दल बदल करते हैं। बहुत लोग लाभ में रहते हैं। लेकिन, राज्य में बीते चार-पांच वर्षों में दल बदल करने वाले 10 विधान परिषद सदस्यों में से सात के लिए दल बदल करना अच्छा नहीं रहा। इन्हें नए दल से सदन में जाने का मौका नहीं मिला। हां, तीन की किस्मत अच्छी रही। इनमें से एक मंत्री हैं। दो विधानसभा एवं विधान परिषद के सदस्य हैं। इन्हें किसी सदन में जाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा। ये सभी 10 सदस्य पूर्व में राजद और कांग्रेस में थे। बाद में सत्तारूढ़ दल जदयू में शामिल हुए।
राज्य के भवन निर्माण मंत्री डा. अशोक चौधरी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। वे मार्च 2018 में जदयू में शामिल हुए। उनके साथ तनवीर अख्तर और डा. दिलीप चौधरी भी कांग्रेस से जदयू में आए। डा. अशोक चौधरी कांग्रेस सदस्य की हैसियत से 2014 में विधान परिषद के लिए चुने गए थे। उनका कार्यकाल जून 2020 में समाप्त हुआ तो करीब नौ महीने तक किसी सदन के सदस्य नहीं बन पाए। 17 मार्च 2021 को परिषद में मनोनयन हुआ। हालांकि कुछ महीने के ब्रेक के साथ वे लगातार मंत्री हैं। जदयू में उनकी हैसियत है। दिलीप चौधरी नवम्बर 2020 में हुए स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में हार गए। कांग्रेस से आए तनवीर अख्तर का कार्यकाल 2022 तक था। निधन हो गया। रोजिना नाजिश को पिछले साल तनवीर की जगह परिषद में भेजा गया। जदयू ने दूसरा मौका नहीं दिया।
कांग्रेस से आए रामचंद्र भारती का कार्यकाल 2020 में समाप्त हुआ। उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आग्रह पर 2014 में राज्यपाल कोटे से नामित किया गया था। वह भी दूसरे कार्यकाल से वंचित हो गए। स्थानीय निकाय प्राधिकार से 2015 में जीते कांग्रेस के राजेश राम जदयू में शामिल हुए। उन्हें इस चुनाव में उम्मीदवार भी बनाया गया पर वह इलेक्शन हार गए।
राजद के पांच विधान परिषद सदस्य 23 जून 2020 को जदयू में शामिल हुए। उनमें से तीन राधा चरण सेठ, संजय प्रसाद और दिलीप राय स्थानीय प्राधिकार से निर्वाचित थे। कमरे आलम और रणविजय सिंह को राजद ने 2016 में विधानसभा कोटे से विधान परिषद में भेजा था। विधायकों की संख्या कम होने के कारण राजद इन दोनों को दूसरी बार विधान परिषद में नहीं भेज पाया। दिलीप राय 2020 में जदयू टिकट पर विधायक बन गए। राधा चरण सेठ ने स्थानीय प्राधिकार वाले चुनाव में जीत हासिल की। जबकि संजय प्रसाद विधानसभा के साथ साथ परिषद का चुनाव भी हार गए।